बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
अथवा
बौद्ध दर्शन निर्वाण विचार की व्याख्या कीजिए।
अथवा
बौद्ध धर्म के निर्वाण सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
(Liberation)
बुद्ध के उपदेशों में तृतीय आर्य सत्य दुःख निरोध है। यही निब्बान (निर्वाण) है। यही बौद्ध धर्म और नीतिशास्त्र का परम श्रेय और बुद्ध के उपदेशों का सार है।
निर्वाण का अर्थ
निवार्ण का सही रूप जानने के लिये निर्वाण शब्द का अर्थ और उसकी विभिन्न व्याख्याओं पर विचार लाभप्रद होगा -
1. निर्वाण का शाब्दिक अर्थ है 'बुझा हुआ'। व्युत्पत्ति के अनुसार कुछ लोग इसका अर्थ जीवन का अन्त समझते हैं लेकिन यह विचार भ्रमात्मक है। यदि ऐसा होता तो बुद्ध मृत्यु से पहले ही निर्वाण प्राप्त न करते। निर्वाण का अर्थ वासना की अग्नि का बुझ जाना है। उसमें लोभ, घृणा, क्रोध और भ्रम की अग्नि बुझ जाती है और कामासव, भावसव तथा अविद्यासव इत्यादि मन की अशुद्धियाँ अथवा नशे (आसव) ठण्डे हो जाते हैं वह भवनिरोध अथवा पुनर्जन्म को रोकने वाला है। बौद्ध ग्रन्थों में आग के 'जलने' और 'बुझने' का अधिक जिक्र आया है। निर्वाण को 'सितिभाव' अथवा शीतलता की अवस्था कहा गया है। उसमें वासना और तज्जनित दुःखों की पूर्ण शान्ति हो जाती है। वह अस्तित्व का विनाश नहीं है। उसे इसी जीवन में प्राप्त किया जा सकता है। वह अकर्मण्यता भी नहीं है। उसमें बौद्धिक और सामाजिक जीवन मुमकिन है। स्वयं बुद्ध का जीवन ही इसी तथ्य का प्रमाण है। निर्वाण कर्मों का नहीं, बल्कि उनमें राग, द्वेष और श्रम का त्याग है। उस अवस्था में शरीर रहते हुए भी तृष्णा समाप्त हो जाती है। वह उपनिषदों की जीवनमुक्ति के समान है। लेकिन निर्वाण के बाद पुनर्जन्म नहीं होता। वह दीपक के सामान बुझ जाता है। रायज डेविड्स के शब्दों में, "निर्वाण मन की पापहीन शान्त अवस्था के समान है और उसे सबसे अच्छी तरह पवित्र, पूर्ण शान्ति, शिक्त्व और प्रज्ञा कहा जा सकता है।'
स्थायी रूप से प्रज्ञा प्राप्त करने के बाद फिर लगातार समाधि में मग्न रहने की जरूरत नहीं होती; न ही फिर कर्मों के बन्धन का डर होता है। वास्तव में बुद्ध के अनुसार कर्म राग, द्वेष और मोह आदि उपस्थिति में बन्धन का कारण होता है लेकिन इनकी अनुपस्थिति में उससे न तो संस्कार होते हैं और न पुनर्जन्म इत्यादि का बन्धन। जैसे साधारण रीति से बीज बोने से पौधे की उत्पत्ति होती है लेकिन यदि बीज बोने के पहले भूँज दिया जाये तो उससे पौधा नहीं पैदा हो सकता है। अतः अनासक्त भाव से कर्म करने में कोई बन्धन नहीं होता।
निर्वाण सब प्रकार के अज्ञान से मुक्त बोधि की अवस्था है। इससे मनुष्य का अहंकार खत्म हो जाता है क्योंकि पंचस्कन्ध से नवीन व्यक्ति को पैदा करने वाले, उसके उपादान, क्लेश और तृष्णा पूरी तरह समाप्त हो चुकते हैं। इसमें 'अहं' का अस्तित्व ही नष्ट हो जाता है। मुक्त पुरुष में पूर्ण अन्तदृष्टि, पूर्ण वासनाहीनता विशुद्ध, शान्ति, पूर्ण संयम, शान्त मन, शान्त शब्द और शान्त क्रियायें होती है।
2. पाली ग्रन्थों में निर्वाण का शान्ति की अवस्था के रूप में चित्रण किया गया है। पिटकों में निर्वाण को "अमाता अर्थात् अमर, अच्छत अर्थात् निरोग, अच्छत अर्थात् परमश्रेय, अकुतोभय अर्थात् जहाँ भय न हो, अनुत्तरयोगखेम अर्थात् पूर्ण सुरक्षित" धम्मपद में निर्वाण को एक आनन्द की अवस्था, परमानन्द, पूर्ण शान्ति, लोभ, घृणा तथा भ्रम से मुक्ति कहा गया है। निर्वाण सुख नहीं है क्योंकि सुख एक लौकिक अनुभव है निर्वाण आनन्द है जो कि सुख से भिन्न है।
3. निर्वाण वर्णनातीत है। डॉ. कीथ (Keith) लिखते हैं, "सब व्यावहारिक शब्द अनिवर्चनीय का वर्णन करने में अनुपयुक्त है।' डॉ. दासगुप्त (Dasgupta) के अनुसार भी निर्वाण का लौकिक अनुभव के शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। उसे न तो निषेधात्मक कहा जा सकता है न स्वीकारात्मक। "वह एक अलौकिक और अवर्णनीय अवस्था है। वह तर्क और विचार के परे की अवस्था है। वह सागर के समान गहरा और अगम्य है। "प्रसिद्ध बौद्ध धर्मोपदेशक नागसेन ने उपमाओं के सहारे राजा मिलिन्द को निर्वाण का स्वरूप समझाते हुए कहा था कि जिनको निर्वाण का कोई भी अनुभव नहीं है उन्हें इन उपमाओं के द्वारा निर्वाण की कुछ भी अनुभूति नहीं हो सकती।" निर्वाण न तो उच्छेदवाद है न शाश्वतवाद। बुद्ध का कथन है कि कुछ अज्ञान, अभूत, अकृत और असंस्कृत है। यदि "कुछ अज न होता तो उत्पन्न हुए के लिए बारह निकलने का कोई मार्ग न था।' ओल्डबर्ग के शब्दों में, "बुद्ध के लिए कुछ अज है" का यही अर्थ है कि जन्मा हुआ, जन्म के शाप से मुक्त हो सकता है। भगिनियों ( sisters) ने दुःखहीनता, शुद्धता, नैतिक प्रयत्नों की परिपूर्णता, स्वतन्त्रता, सच्चा आनन्द, तृष्णा से मुक्ति, पूर्ण शान्ति, पूर्ण आत्मनियन्त्रण और जरा तथा सब कष्टों के पूरी तरह बुझ जाने को निर्वाण कहा है।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
- प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
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- प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
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- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
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- प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
- प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
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- प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
- प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
- प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
- प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
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- प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
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- प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
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- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
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- प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
- प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
- प्रश्न- चित्त क्या है?